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The Girl With The Golden Thoughts

राजनगर एक्सप्रेस आज अपने निर्धारित समय पर चल रही थी। रात के तकरीबन ग्यारह बज रहे थे। सेकंड एसी में इस वक्त व्योम और भास्कर आमने सामने बैठ कर चेस खेल रहे थे। ट्रेन में खेलने के लिए ही भास्कर ने मेग्नेटिक चेस खरीदी थी। अब तक तीन बार गेम हुआ था और तीनों बार व्योम विजेता बना था। इसका कारण ये नहीं था कि व्योम बहुत अच्छा खेलता था पर भास्कर का ध्यान कही और था।

“क्या बात है, भास्कर? तुम क्या सोच रहे हो?”

“कुछ नहीं यार।”

“बताओ भी, तुम काफी देर से विचारों में लगे हुए हो।”

“ऐसी कोई खास बात नहीं है।”

“अच्छा तो खास नहीं है ऐसी ही बात बता दो।”

“दरअसल में तुम्हारे और अलिशा के बारे में सोच रहा था।” भास्कर ने कहा। -“तुम 6 महीनो पहले तक पक्के वूमनाइजर थे, कॉलेज की जिस भी लड़की को चाहा उसे पा लेते थे।”

“मैं बस कोशिश करता था और लड़कियाँ खुद मेरे इर्द गिर्द घूमती थी।”

“ऐसा ही सही। अलिशा भी तुम्हारी फितरत जानती थी, उसने भी तो दो तीन लड़कियो को तुम्हारे डेट के रूप में जाने के लिए तैयार किया था। फिर भी वह आज तुमसे शादी करने के लिए तैयार है। ये कैसे हो गया?”

सुनकर व्योम हौले से मुस्कुराया और बोला-“जब मैंने अलिशा से” आई लव यू” कहा था तब उसने भी मेरे वूमनाइजर होने की बात कही थी और मैंने उससे कहा था कि ये सच है कि मैं कई लड़कियो के साथ घूमा हूँ, फ़िल्मे देखी है, क्लब में गया हू, पर आज तक किसी भी लड़की के साथ राते रंगीन नहीं की है और न ही किसी लड़की के साथ प्यार का ईजहार  किया है।”

“और अलिशा तुम्हारा यह सफ़ेद झूठ मान गयी थी?”

“बिलकुल नहीं। पर उसने कहा था कि वह मेरे ऊपर नजर रखेगी, अगर में 6 महीनो तक किसी लड़की के करीब तक नहीं गया, तो वह मेरे बारे में सोचेगी। बस तब से मैं हर लड़की से दूर हो गया और मेरे बदलाव को देखकर अलिशा मान गई। पर फिर भी हाँ कहने से पहले उसने मुझे बहुत परेशान किया था।”

“पर मैं मानता हूँ की तुम अपनी आदत नहीं छोड़ोगे।”

“तुमने अभी प्यार का अनुभव नहीं किया है। आपको बॉल का पता ही नहीं चलता और आप क्लीन बोल्ड हो जाते है। प्यार को पाने के लिए इंसान पूरी तरह से बदल सकता है। जब तुम्हें होगा तब ये बात पता चलेगी।”

“मै प्यार में यकीन नहीं करता।”

“करने लगोगे, जब होगा। उम्मीद करता हूँ तुम्हें भी जल्दी ही कोई मिल जाए।”

“वैसे रात बहुत हो गयी है, हमे सो जाना चाहिए, सुबह 6: 30 तक राजनगर आ जाएगा। गुड नाइट।”

“गुड नाइट।”

सुबह ट्रेन अपने निर्धारित समय पर राजनगर पहुंची। व्योम और भास्कर के परिवारों ने ड्राईवर के साथ गाड़ियाँ भेज दी थी।

वैसे तो व्योम के पास और भी तीन गाड़ियाँ थी पर उसे अपनी फॉक्सवेगन पोलो ही पसंद थी। क्योकि एक तो उसे छोटी होने के कारण ट्रैफिक में भी आराम से निकाला जा सकता था और दूसरा यही एक कार थी जिसे उसके माता पिता बिना ड्राईवर के ले जाने की अनुमति देते थे। उसे पता था कि रेल्वे स्टेशन से घर के बीच काफी ट्राफिक होगा इसलिए वह इसी कार की उम्मीद कर रहा था, पर व्योम के पिता ने आज ड्राईवर के साथ उनकी मर्सिडीज भेजी थी, ये देखकर व्योम हल्का-सा चौंक गया। उसने भास्कर से विदा ली और दोनों अपने-अपने घर की ओर निकल गए।

व्योम के पिता ने उसके लिए जिस ड्राईवर को भेजा था वह तकरीबन 55-60 साल के आसपास का था और उनके परिवार के साथ कोई 20-25 सालो से था। व्योम को स्कूल छोड़ने के लिए भी तकरीबन हर बार वही आया करता था। उसका नाम रामराजेश था और व्योम उसे राजुचाचा कहता था और रामराजेश भी उसे सिर्फ़ व्योम ही कहता था। उसने गाड़ी आगे बढ़ाई। जैसे कि व्योम को पहले ही पता था ट्रैफिक के कारण गाड़ी काफी धीरे-धीरे चल रही थी। थोड़ी देर बाद आने वाले चौराहे से राजुचाचा ने गाड़ी को घर की तरफ ले जाने की बजाय दूसरी दिशा में घूमा दिया।

“इस तरफ क्यों, राजूचाचा?” व्योम ने पूछा।

“हम अलिशा के घर जा रहे है, व्योम। तुम्हारे पापा भी वही है।”

“पर क्यों?”

“सब्र रखो, सभी पता चल जाएगा। वैसे इतना बता दूँ की न ही कोई चिंता की बात है और न ही तुम्हारी शादी की बात है।”

गाड़ी अलिशा के बंगले में दाखिल हुई। आगे की जगह राजुचाचा ने गाड़ी को पीछे की और ले लिया और बोले, इस वक्त आगे के दरवाजे पर काफी भीड़ होगी और हमें पीछे के दरवाजे से ही जाना पड़ेगा। “

व्योम ने अलिशा के घर के अंदर कदम रखा। एक नौकर पहले ही तैयार था, वह

उसे नजदीक ही बने स्टडी में ले गया। व्योम ने देखा, वह उसके पापा, रघुनंदन रॉय; अलिशा के पापा, अनंतराय के साथ-साथ तीन और लोग भी बैठे थे। उसे आया देखकर उसके पिता उठे और उन तीन लोगो से उसका परिचय करवाया। व्योम चाहे उन्हे पहली बार देख रहा था पर उनके नाम उसके लिए नये नहीं थे। वह उस पक्ष के काफी बड़े कार्यकर थे जिसके साथ अलिशा का परिवार जुड़ा हुआ था।

उसने हैरानी से पूछा, “पापा, आखिर बात क्या है?”

“मै बताता हूँ व्योम।” अनंतराय ने कहा।

“जैसा की तुम जानते हो की इस विधानसभा बैठक के हमारे सदस्य का दिल का दौरा पड़ने के कारण 10 दिन पहले स्वर्गवास हो गया।”

व्योम ने सिर हिलाकर हामी भरी।

“अब यहाँ फिर से चुनाव होने वाले हैं। इस वक्त इस बैठक पर से गए उस दिवन्गत नेता के काले करतूतों की बदौलत हमारी पार्टी की जीत की उम्मीदे काफी कम है,या यूँ कहूँ न के बराबर है। वैसे इस बैठक के हार जाने से पक्ष की बहुमती पर कोई असर नहीं होगा।”

“मुझे इससे क्या लेना देना है? राजनीति में मेरा ज्ञान जीरो ही है” व्योम बोला।

“जानता हूँ बेटे। पर पहले पूरी बात सुन लो। सामने वाले पक्ष ने इस बैठक पर एक युवा को खड़ा किया है, इसलिए हमारी ज़रूरत है कि हम भी किसी युवा को टिकिट दे। तुम जानते ही होगे की 1 साल बाद लोकसभा और दो साल बाद विधानसभा का चुनाव आने ही वाला है और इस हारी हुई बैठक पर पक्ष कोई अच्छे कार्यकर को खड़ा करके उसे बर्बाद नहीं करना चाहता क्योंकि वह बाद में जहाँ भी खड़ा रहे लोग बिना रिसर्च किए सिर्फ यही कहेंगे की ये तो बुरी तरह हार गया था।”

“ह…”

“अब नया युवा नेता चुनने की ज़िम्मेदारी पक्ष ने मुझे दी है, नेता ऐसा होना चाहिए की चाहे  हारे या जीते कोई फर्क न पड़े और साथ ही  लोगों को लगे की पक्ष नए पढ़े लिखे चेहरों को भी मौका देता है।”

“एक मिनट। कही आप मुझे खड़ा करने के बारे में तो नहीं सोच रहे है?”–व्योम क्रोधित हो कर बोला। “अगर ऐसा है तो भूल जाइए। मेरा राजनीति से कोई वास्ता नहीं है।”

“इसीलिए तो ये तुम्हें खड़ा करना चाहते है, बेटा।”–व्योम के पिता ने कहा और जोड़ा, “तुम्हें सिर्फ इसमें खड़ा रहना है और हारना है।”

“और अगर गलती से मैं जीत गया तो?”

“पहले तो ये होगा नहीं और हो गया तो तुम्हें मंत्री तो बनना नहीं है सिर्फ़ एक धारासभ्य बनकर डेढ़ साल रहना है। ठीक वैसे ही जैसे फ़िल्म स्टार राज्यसभा से जुड़े रहते है और तुम्हारी सलाहकार समिति भी तो होगी।” पक्ष के कार्यकर ने जवाब दिया।

“पर मेरे जैसा एकदम नया चेहरा, क्या कार्यकर बर्दाश्त करेंगे? आप हर एक को तो बताने से रहे की मुझे हारने के लिए खड़ा किया गया है और मुझे टिकिट देने से कार्यकरों में असंतोष फ़ैल सकता है।”-व्योम ने बचने की आशा से कहा।

“कार्यकरो में असंतोष न फैले इसीलिए तो तुम्हें खड़ा कर रहे हैं।” अनंतराय ने कहा।

“मैं समझा नहीं।”

“समझाता हूँ। अब ये तो तय है कि पार्टी ऐसे व्यक्ति को टिकिट देना चाहती है जो अभी तक कभी चुनाव न लड़ा हो ताकि हारने से उसे और बाद में उसे  गँवाने से पार्टी को कोई फर्क न पड़े। जैसा की तुम समझ रहे हो हम हारने वाले है ये हर किसी को बता नहीं सकते ऐसे में नए युवा कार्यकर को टिकिट दिया तो उससे ज़्यादा अनुभवी कार्यकर विरोध करेंगे और अगर किसी अच्छे युवा कार्यकर को टिकिट देंगे तो उसका हारना उसके लिए बुरा होगा। जबकि तुम सीधे प्रमोट होकर टिकिट पाओगे तो हर एक कार्यकर को हम समझा सकेंगे की पैसे मैं दे रहा हूँ इसलिए मेरे होने वाले दामाद को टिकट दी गई है।”

“फिर भी मैं तैयार नहीं हूँ।”

“हम तुमसे पूछ नहीं रहे हैं, तुम्हें बता रहे हैं, बेटे।” अनंतराय ने तनिक उग्र होकर कहा, पर तुरंत खुद को संभाला और नम्र आवाज में बोले, “दरअसल अलिशा ने ही तुम्हारा नाम सुजाया था, इसी सिलसिले में हमने तुम्हारे पिता से बात की और उनकी हाँ के बाद तुम्हारा नाम पहले से आगे कर दिया है। सिर्फ़ अधिकृत रूप से प्रेस को कहना बाकी है वह बाहर इंतजार कर रही है।”

“ठीक है, फिर तो मेरे लिए कोई रास्ता ही नहीं बचा। लेकिन आप इसे अभी नहीं मेरे ट्रिप से लौटने के बाद प्रेस को बताएँगे। ताकि ट्रिप में कोई मुझ पर कुछ ज़्यादा ही ध्यान न दे।”

“दैट्स लाइक अ गुड बॉय। मुझे पता था कि तुम मान जाओगे।”–उसके पिता बोले।

“तुम्हारी बात मंजूर की जाती है। अभी के लिए प्रेस वालो को विदा कर देते है।”-अनंतराय ने कहा, साथ ही पिता की तरह बोले-“मेरा यकीन करना व्योम, ये अनुभव तुम्हें भविष्य में काम आएगा। दरअसल तुम, लोगो से ज़्यादा घुल मिल नहीं सकते और मुझे पक्का यकीन है कि इस चुनाव के दौरान ही तुम्हारी ये कमी धीरे-धीरे दूर हो जाएगी।”

मीटिंग रूम से बाहर निकालकर व्योम ने अपने पिता से पूछा, “तो इसीलिए आपने मर्सिडीज भेजी थी ताकि अगर मीडिया वाले फोटो ले भी तो उसमे पोलो जैसी कार न दिखे।”

“बिलकुल बेटे।”

दोनों साथियो से विदा लेकर कार की ओर चल दिये।

व्योम उत्तेजित था और भास्कर और अलिशा से इस बारे में बात करना चाहता था। साथ ही साथ वह अपनी शिमला की ट्रिप के बारे में भी सोच रहा था।

About The Author

Ashutosh Jogia is a doctor and a professor in a medical college in Gujarat.

He was born in a Dahegam, a small town of Gujarat state in India. He grew up in Gandhinagar, the capital of Gujarat.  He is fond of reading since childhood. His parents are also doctors and he got the habit of reading from his mother. He wrote his first two novels after completing MBBS studies which were published only as E-book and later he joined to complete his MD. After completing his M. D, when he decided to write his third novel, his parents insisted him to write something in the regional language Ashutosh decided to write a book in Hindi.

He generally takes the base of the novel from his talk with his patients but sometimes also use the events occurring around him.

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